सोमवार, 10 मार्च || आत्मिक अमृत
- Honey Drops for Every Soul

- Mar 10
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अध्ययनः लूका 18ः 35-42
दृढ़ निश्चयी भिखारी
‘तब उसने पुकार के कहा, “हे यीशु, दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर!” ‘ लूका 18ः38
जैसे ही यीशु यरीहो के पास आये, भीड़ के विरोध के बावजूद एक अंधा व्यक्ति लगातार उन्हें पुकारता रहा। वास्तव में, ऐसा प्रतीत होता था मानो वह यीशु को उसकी आँखों की रोशनी प्राप्त किए बिना अपने पास से नहीं जाने देगा! उसने यीशु को ‘‘दाऊद के पुत्र‘‘ के रूप में संबोधित किया, जो एक मसीहाई शीर्षक है, और इससे संकेत मिलता है कि यह यहूदी भिखारी जानता था कि यीशु निश्चित रूप से उसे, एक अंधे व्यक्ति को दृष्टि देगा, क्योंकि वह मसीहा था। और नतीजा? यीशु ने उसका अंधापन ठीक कर दिया। उसके जीवन में क्या परिवर्तन आया! वो अंधकार से प्रकाश की ओर चला, भीख माँगने से परिवर्तित होकर यीशु के पीछे चलने लगा और वो रोने से प्रभु की स्तुति करने लगा। (वचन 43)
प्रिय दोस्तों, यह घटना हमें यीशु मसीह में विश्वास रखने के लिए प्रोत्साहित करती है, चाहे हमारी परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, वे हमेशा हमारे विश्वास का जवाब देते है और अगर हम उन पर पूरी तरह से विश्वास करते हैं तो वे हमें पुरस्कृत करते हैं। अंधे व्यक्ति ने उन बाधाओं को नहीं देखा जो उसे यीशु के निकट आने से रोक रही थीं। ‘‘वह और अधिक चिल्लाया।‘‘ (वचन 39) उसे चंगा होने दृढ़ निश्चय था। आइये, हमें भी थक नहीं जाना चाहिये बल्कि हमें विश्वास में दृढ़ रहना चाहिये। क्योंकि हम विश्वास करते है कि यीशु मसीह है और वे कोई भी बीमारी को चंगा कर सकते है और हमें कोई भी समस्या से चंगा कर सकते है, इसलिये हमें ध्यान भटकना नहीं चाहिये। आइये हमें उनकी ओर देखते रहना चाहिये। “जैसे दासों की आँखें अपने स्वामी के हाथ की ओर लगी रहती है३” वैसे ही हमारी आँखें अपने परमेश्वर यहोवा की ओर लगी रहें जब तक कि वे हम पर दया न दिखाए।प्रार्थनाः स्वर्गीय पिता, मैं आपसे कुछ भी पाने के योग्य नहीं हूं। मैं पापी हूं। क्षमा चाहता हूँ। मैं आपके चेहरे को तब तक देखता रहूं जब तक मुझे आपकी कृपा और दया नहीं मिल जाती। आपके अलावा मेरे पास कोई नहीं है जो मुझे बचा सके और जो आनंद और शांति मैंने खो दी
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