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बुधवार, 15 अक्टूबर || जब हम पर मुसीबतें आती हैं तो हम कैसे प्रतिक्रिया देते हैं?

  • Writer: Honey Drops for Every Soul
    Honey Drops for Every Soul
  • 3 days ago
  • 2 min read

आत्मिक अमृत अध्ययनः निर्गमन 17ः 1-7


तब मूसा ने यहोवा की दोहाई दी, और कहा, “इन लोगों के साथ मैं क्या करूँ? ये सब मुझ पर पथराव करने को तैयार हैं।” ‘ - निर्गमन 17ः4


जब इस्राएलियों ने रपीदीम में डेरा डाला, तो उनके पास पीने के लिए पानी नहीं था। इसलिए वे मूसा से झगड़ने लगे और उसके विरुद्ध बड़बड़ाने लगे। तो मूसा ने क्या प्रतिक्रिया दी? उसने इस्राएलियों से झगड़ा करने के बजाय प्रभु को पुकारने का चुनाव किया, जो एक सांसारिक व्यक्ति के लिए एक प्रलोभन होता। एक सांसारिक व्यक्ति चिल्लाता, ‘‘अपना मुँह बंद करो, हे कृतघ्न लोगों!‘‘ लेकिन मूसा ने ऐसा नहीं किया। मूसा के पास कुछ विश्वसनीय व्यक्ति भी थे, इस्राएल के पुरनिये, जिनसे वह सलाह ले सकता था। लेकिन वह पहले प्रभु के पास गया। मूसा के पास भी इस्राएलियों की तरह, परमेश्वर पर अविश्वास करने के प्रलोभन के उतने ही कारण थे। लेकिन उसका जवाब प्रार्थना था। जब भी उसे कठिन बाधाओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ा, मूसा ने प्रभु की ओर रुख किया और मार्गदर्शन माँगा। जब भी अप्रत्याशित मुसीबत आती है, हमें भी यही आदर्श अपनाना चाहिए - पहले प्रभु के पास जाएँ। आइए याद रखें, प्रभु हमारे जीवन में ऐसी कोई भी चीज नहीं आने देंगे जिसे हम संभाल न सकें। वॉरेन विर्सबे लिखते हैं, ‘‘जब परमेश्वर अपने बच्चों को कष्टों की भट्टी से गुजरने देते है, तो उनकी नजर घड़ी पर और हाथ थर्मोस्टेट पर रहता है।‘‘ कभी-कभी हमें न तो सूरज दिखाई देता है और न ही तारे, और तूफान भयंकर लगता है। याद रखें - दूसरों की सलाह सही नहीं होगी, हमारे पिछले अनुभव हमें कोई रोशनी नहीं देंगे। बस एक ही सलाह बची है। हमें प्रभु पर भरोसा रखना चाहिए। हमें परमेश्वर की वफादारी और उनके अनंत प्रेम पर अपना भरोसा मजबूत रखना चाहिए।

प्रिय मित्रों, जब मुसीबत हमारे दरवाजे पर दस्तक देती है, तो क्या हम सबसे पहले प्रभु के पास जाते हैं? हमें अपने प्रभु के इस वादे को याद रखना चाहिए, ‘‘निश्चय मैं तुम्हारे साथ हूँ, जगत के अंत तक।‘‘ निस्संदेह इसी आश्वासन ने मूसा को, जंगल में भटकते हुए विद्रोही लोगों का, नेतृत्व करने की शक्ति और आत्मविश्वास दिया था।

प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, जब भी मैं किसी बाधा, कठिनाई या समस्या का सामना करूँ, तो मुझे ‘मूसा पद्धति‘ का अभ्यास करने में मदद करें। मेरी सहज क्रिया यह हो कि मैं ‘प्रार्थना में इसे प्रभु के पास ले जाऊँ!‘ लोग मेरे साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार कर सकते हैं, वे मुझे छोड़ सकते हैं, लेकिन मुझे याद रखना चाहिए कि आप नियंत्रण में हैं, और मैं अपनी प्रार्थना के श्रोता, आपसे जुड़ा रहूँगा। आमीन

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