सोमवार, 7 अक्टूबर || मूर्तियों से छुटकारा पाओ! केवल परमेश्वर की महिमा करो!
- Honey Drops for Every Soul

- Oct 7
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आत्मिक अमृत अध्ययनः यहेजकेल 8ः 1-18
अतः मैं ने अपनी आँखें उत्तर की ओर उठाकर देखा कि वेदी के फाटक के उत्तर की ओर उसके प्रवेश स्थान ही में वह डाह उपजानेवाली प्रतिमा है।‘ - यहेजकेल 8ः5
इस्राएल के इतिहास में दुष्ट राजाओं में से एक, मनश्शे, जो यहेजकेल से 1000 वर्ष पहले रहा था, उसने अशेरा की खुदवाई हुई मूर्ति को यहोवा के भवन में स्थापित किया था, जिसके विषय में यहोवा ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से कहा था, “इस भवन में और यरूशलेम में, जिसको मैं ने इस्राएल के सब गोत्रों में से चुन लिया है, मैं सदैव अपना नाम रखूँगा।“ (2 राजाओं 21ः7) इस छवि को बाद में योशिय्याह ने नष्ट कर दिया जैसा कि 2 राजाओं 23ः6 में दर्ज है, “वह अशेरा को यहोवा के भवन में से निकालकर यरूशलेम के बाहर किद्रोन नाले में ले गया और वहीं उसको फूँक दिया, और पीसकर बुकनी कर दिया। तब वह बुकनी साधारण लोगों की कबरों पर फेंक दी।“ परमेश्वर ने इस्राएल को आज्ञा दी, “तुम उनके सामने दण्डवत् न करना (मूर्ति या किसी भी चीज की आकृति जो ऊपर आकाश में या नीचे पृथ्वी पर या पृथ्वी के नीचे के जल में हो) क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला परमेश्वर हूँ (निर्गमन 20ः5) इस्राएलियों को निर्देश दिया गया था, ‘‘किसी दूसरे को ईश्वर करके दण्डवत् करने की आज्ञा नहीं, क्योंकि यहोवा जिसका नाम जलनशील है, वह जल उठनेवाला परमेश्वर है।‘‘ (निर्गमन 34ः14) यहाँ, उनके नाम ईर्ष्यालु का अर्थ, यहोवा-कन्ना है । यह इस बात पर जोर देता है कि परमेश्वर उन लोगों की विभाजित निष्ठा को बर्दाश्त नहीं करेंगे जो ‘‘उनकी संपत्ति‘‘ होने का दावा करते हैं। हमें अपने जीवन से, अपने व्यवहार और आचरण से, एकमात्र सच्चे परमेश्वर के रूप में उनका सम्मान करना चाहिए, न कि केवल ‘‘दिखावटी सेवा‘‘ करनी चाहिए।
प्रिय मित्रों, आइए हम अपने जीवन में किसी भी मूर्ति को महिमा न दें। हो सकता है कि हम सचमुच किसी गढ़ी हुई मूर्ति के आगे न झुकें और उसकी पूजा न करें, लेकिन हमारे हृदय और जीवन में ‘‘परिष्कृत मूर्तियाँ‘‘ हो सकती हैं। शब्दकोश मूर्ति को ‘‘किसी भी व्यक्ति या वस्तु के रूप में परिभाषित करता है जिसे अंध प्रशंसा, आराधना या भक्ति से देखा जाता है।‘‘ हम अपने जीवन में किस चीज को बड़ी श्रद्धा से देखते हैंकृएक सफल करियर, शिक्षा, प्रसिद्धि और नाम, या एक विलासितापूर्ण जीवन शैली? आइए हम खुद से पूछें, ‘‘अगर यह हमसे छीन लिया जाए, तो क्या मैं तब भी प्रभु से प्रेम करूँगा और उनका निष्ठापूर्वक अनुसरण करूँगा?‘‘प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, मुझे सावधान रहने दीजिए कि मैं कोई मूर्ति बनाकर उसकी पूजा न करूँ। मैं किसी और को महिमा न दूँ। मैं जीवन, धन या शिक्षा के सुख को बहुत ऊँचा न समझूँ, और ये मेरा ध्यान आपसे दूर न करें। क्योंकि आप ईर्ष्यालु परमेश्वर हैं और मैं आपकी अनमोल संपत्ति हूँ। आमीन।
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