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शुक्रवार, 3 अक्टूबर || परमेश्वर की उपस्थिति में आनंद की परिपूर्णता है

  • Writer: Honey Drops for Every Soul
    Honey Drops for Every Soul
  • Oct 3
  • 2 min read

आत्मिक अमृत अध्ययनः लूका 10ः 38-42


‘प्रभु ने उसे उत्तर दिया, “मार्था, हे मार्थाय तू बहुत बातों के लिये चिन्ता करती और घबराती है। परन्तु एक बात अवश्य है”‘ - लूका 10ः41, 42


हमारे जीवन में कई अच्छी चीजें इतना समय ले लेती हैं कि वे ‘‘एक चीज‘‘ को, यानी सबसे जरूरी चीज को, जो केंद्र में होनी चाहिए, निचोड़ देती हैं। इसे हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं - अगर हम अपने बच्चे को एक विश्वस्तरीय पियानोवादक या एथलीट बनाना चाहते हैं, तो हमें उसे छोटी उम्र से ही प्रशिक्षण देना शुरू कर देना चाहिए। उसे हर दिन, हफ्ते-दर-हफ्ते, साल-दर-साल, घंटों नियमित रूप से अभ्यास कराना चाहिए। बाकी सब चीजें गौण हो जाएँगी। सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए, बच्चे को उन चीजों को त्यागना होगा जिन्हें दूसरे ‘‘सामान्य‘‘ कहते हैं। ‘‘एक चीज‘‘ को ‘‘अनेक चीजों‘‘ पर प्राथमिकता देनी चाहिए। यही बात यीशु ने मार्था पर जोर देते हुए कहा था। यीशु ने उससे कुछ इस तरह कहा - ‘‘मार्था, तुम खाना बनाने और परोसने में बहुत व्यस्त हो। तुम्हारे इरादे तो नेक हैं, लेकिन तुम्हारा दिल बँटा हुआ हौ और विचलित है। मेरी सेवा करने के तुम्हारे उत्साह ने मुझे तुम्हारे दिल की गहराई तक पहुँचा दिया है। मैं हर उस चीज के केंद्र में रहना चाहता हूँ जो मेरे सम्मान में एक शानदार भोजन तैयार करने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।‘‘ मार्था का मानना था कि मसीह के स्वागत के लिए कई चीजें तैयार की जानी चाहिए, और वह उनमें से एक भी चीज को छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकती थी। हमारे प्रभु तो मछली के एक टुकड़े या मधु-छत्ते से ही संतुष्ट हो जाते! मरियम को भी वही मौका दिया गया था जो मार्था को मिला था, लेकिन मरियम ने यीशु के चरणों में बैठना चुना।

 प्रिय मित्रों, जब हम प्रभु के लिए बहुत से काम करना जरूरी समझते हैं, जैसे कि हम बहुत प्रचार करते हैं, संडे स्कूल में बहुत पढ़ाते हैं, बहुत सारे ट्रैक्ट बाँटते हैं, तो हममें भी मार्था की आत्मा जागृत होती है। आइए हम याद रखें कि जब ज्यादा काम को प्राथमिकता दी जाती है और आंतरिक जीवन, प्रार्थना और वचन को भुला दिया जाता है, तो हमें ईश्वरीय आशीर्वाद नहीं मिलेगा। इसलिए, हम जो कुछ भी करते हैं, वह प्रभु के नाम और उनकी आत्मा के द्वारा हो और उनकी दृष्टि में प्रसन्नित हो।
प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, मैं समझता हूँ कि जो सेवा आपके चरणों में बैठकर नहीं की जाती है, वह उस चक्की की तरह है जो गेहूँ पिसे बिना ही चलती है। मैं मार्था की तरह न बनूँ जो शरीर को तृप्त करने वाली रोटी की चिंता करती थी, बल्कि मरियम की तरह बनूँ और आप पर ध्यान केंद्रित करूँ, जो जीवन की रोटी है और आत्मा को तृप्त करते है। आमीन

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