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शुक्रवार, 11 अक्टूबर अध्ययनः कुलुस्सियों 3ः 16,17

  • Writer: Honey Drops for Every Soul
    Honey Drops for Every Soul
  • Oct 11, 2024
  • 2 min read

आत्मिक अमृत

यीशु की महिमा चमकने तक उनकी ओर देखो

मैं सोती थी, परंतु मेरा मन जागता था। सुनो! मेरा प्रेमी खटखटाता है” (श्रेष्ठगीत 5ः2)


“प्रार्थना परमेश्वर के संपर्क में आने के समय की तरह है। हमारी आत्माएँ फोटोग्राफिक प्लेटों की तरह कार्य करती हैं, और मसीह की चमकती छवि प्रकाश है। जितना अधिक हम अपने जीवन को उनके धर्मी जीवन के सफेद-गर्म सूरज के सामने उजागर करेंगे (उदाहरण के लिए, दिन में पांच, दस, पंद्रह, तीस मिनट या एक घंटा), उतना ही अधिक उनकी छवि हमारे चरित्र में जल जाएगी - उनका प्यार, उनका करुणा, उनका विश्वास, उनकी सत्यनिष्ठा, उनकी विनम्रता,‘‘ आर. केंट ह्यूजेस लिखते हैं। इसलिए, जितना अधिक समय हम परमेश्वर के साथ प्रार्थना में बिताते हैं, उतना ही अधिक हम उनके जैसे बन जाते हैं। पौलुस ने थिस्सलुनिकियों से कहा, ‘‘लगातार प्रार्थना करें।‘‘(1 थिस्सलुनीकियों 5ः17) लेकिन हम पूछ सकते हैं, ‘‘क्या निरंतर प्रार्थना संभव है?‘‘ बेशक, जब हम अपने काम में शामिल होते हैं तो प्रभु के साथ निरंतर मौखिक बातचीत करना असंभव है, लेकिन हर समय उनके साथ आत्मा में संवाद करना संभव है। भाई लॉरेंस, जो एक भिक्षु थे, उन्होंने अपनी निरंतर प्रार्थना के अनुभव को अपनी पुस्तक, ‘‘परमेश्वर की उपस्थिति का अभ्यास‘‘ में इस प्रकार दर्ज किया हैः ‘‘व्यवसाय का समय मेरे लिए प्रार्थना के समय से अलग नहीं है, और मेरी रसोई के शोर में, जबकि कई व्यक्ति एक ही समय में अलग-अलग चीजें मांग रहे हैं, मैं परमेश्वर को इतनी शांति से प्राप्त करता हूं जैसे कि मैं अपने घुटनों पर हूं।“ जॉन वेस्ली ने भी तीसरे व्यक्ति में अपने अनुभव को विनम्रतापूर्वक इस प्रकार समझाया हैः ‘‘”(उनका) हृदय हर समय और सभी स्थानों पर परमेश्वर की ओर खुला रहता है। इसमें, उसे कभी भी बाधा नहीं आती है, किसी भी व्यक्ति या चीज द्वारा तो बिल्कुल भी बाधित नहीं किया जाता है। सेवानिवृत्ति में या संगति में, अवकाश में, व्यवसाय में या वार्तालाप में, उसका हृदय सदैव प्रभु के साथ रहता है। चाहे वह लेटता हैं या उठता हैं, वह अपने सभी विचारों में परमेश्वर के साथ चलता है। वह परमेश्वर के साथ निरंतर चलता है, उसके मन की प्रेमपूर्ण दृष्टि उन पर स्थिर रहती है और हर जगह उसे देख रहा होता हैं जहाँ वे अदृश्य है।‘‘


प्रिय मित्रों, क्या हम केवल आवश्यकता के समय ही परमेश्वर की उपस्थिति में आते हैं, या क्या हम उनके साथ निरंतर संगति रखते हैं? आइए हम यह न कहें कि निरंतर प्रार्थना केवल संतों और परमेश्वर के सेवकों के लिए है। यह बिना किसी अपवाद के प्रत्येक ईसाई के लिए परमेश्वर की इच्छा है। चाहे हम खाना बना रहे हैं या गाड़ी चला रहे हैं, आइए हम परमेश्वर के साथ निरंतर आंतरिक संवाद करें। आइए हम पल-पल उनकी समानता में परिवर्तित होते जाएँ!

प्रार्थनाः सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मुझमें प्रार्थना की भावना बहाओ। मेरी आत्मा हर पल आपके साथ संवाद करती रहे, और मुझे हमेशा आपकी मधुर संगति का आनंद लेने दें। मुझे आपके चेहरे की ओर तब तक देखने दीजिए जब तक आपकी महिमा मुझ पर चमक न जाए। यीशु के नाम पर मैं प्रार्थना करता हूँ। आमीन

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