रविवार, जून 08 || यहोवा मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है। मैं किससे डरूं?
- Honey Drops for Every Soul

- Jun 8
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आत्मिक अमृत अध्ययनः भजन संहिता 27ः 1, 3
“चाहे सेना भी मेरे विरुद्ध छवनी डाले, तौभी मैं न डरूँगा...” - भजन संहिता 27ः3
जॉन मैक आर्थर लिखते हैं, ‘‘डर के मूलतः दो कारण हैं। एक दोषी विवेक है। दूसरा विश्वास की कमी है।‘‘ जब किसी व्यक्ति के जीवन में पाप होता है और उसे लगता है कि एक दिन उसे पकड़ा जाएगा और उसे दंडित किया जाएगा, तो वह डरता है या दूसरा, एक व्यक्ति इसलिए डरता है क्योंकि उसे नहीं लगता कि परमेश्वर उसकी स्थिति का ध्यान रखेगा। जब हम परमेश्वर की बुद्धि, शक्ति और भलाई पर भरोसा करने में विफल हो जाते हैं, तो हम चिंतित और भयभीत हो जाते हैं। हम तर्क करते हैं कि परमेश्वर आपदा को रोकने के लिए पर्याप्त बुद्धिमान, पर्याप्त मजबूत या पर्याप्त अच्छे नहीं है। फिलिप्पियों 4ः 6 में, पौलुस हमें परमेश्वर पर अपना ध्यान केंद्रित करने का निर्देश देते है। ‘‘किसी भी बात की चिंता मत करो, परंतु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा, धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थिति किए जाएँ।‘‘ जब हम अपनी वर्तमान परिस्थितियों के लिए कृतज्ञता के भाव के साथ परमेश्वर से विशेष रूप से प्रार्थना करते हैं, तो इसका अंतिम परिणाम शांति, आत्मा की आंतरिक शांति है जो प्रभु से आती है। (फिलिप्पियों 4ः7) इस शांति में परमेश्वर की परिपूर्ण बुद्धि और असीम शक्ति पर भरोसा शामिल है, जो बदले में हमें जीवन के तूफानों के बीच शांत रखता है और हमें भय की जकड़ से मुक्त करता है। इसके अलावा, हमें यह स्वीकार करने की जरूरत है कि हमारी सभी कठिनाइयाँ अभी भी हमारे जीवन में परमेश्वर के उद्देश्य का हिस्सा हैं। व्यावहारिक ईसाई जीवन की चुनौती हमारे जीवन से हर असहज परिस्थिति को खत्म करना नहीं है, बल्कि हर उस परिस्थिति में अपने प्रभुता संपन्न, बुद्धिमान, भले और शक्तिशाली परमेश्वर पर भरोसा करना है जो भय का कारण बनती है।
प्यारे दोस्तों, क्या हम बहुत डरते हैं? याद रखें, अगर हम कृतज्ञता के भाव से परमेश्वर की ओर देखने की आदत विकसित करना चाहते हैं, तो हम उनकी शांति और आराम का आनंद ले सकते हैं।प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, जब मैं भयभीत होऊँ, तो मुझे अपना ध्यान आप पर, आपकी बुद्धि, शक्ति और भलाई पर केन्द्रित करने दें। मैं समझता हूँ कि आज मैं जिस परिस्थिति का सामना कर रहा हूँ, वह आपके उद्देश्य का एक हिस्सा है। इसलिए मुझे चिंतित नहीं होना चाहिए, बल्कि कृतज्ञता के साथ आपकी प्रभुता के आगे अपने आप को समर्पित करना चाहिये। आमीन।
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