रविवार, 5 अक्टूबर || सिर्फ बातें मत करो, काम करके दिखाओ
- Honey Drops for Every Soul
- Oct 5
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आत्मिक अमृत अध्ययनः याकूब 1ः 22-25
‘“जब तुम मेरा कहना नहीं मानते तो क्यों मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु,’ कहते हो? ‘ - लूका 6ः46
ईसाइयों में एक आम पाप है विश्वास का दावा करना, लेकिन उस पर अमल न करना। स्वयं यीशु के कई अनुयायी थे जो उन्हें प्रभु कहकर उनका आदर करने का दिखावा करते थे, लेकिन उनकी आज्ञाओं का पालन नहीं करते थे। यह प्रारंभिक कलीसिया में भी मौजूद था। प्रेरित याकूब ने याकूब 1ः22 में चेतावनी दी, ‘‘परंतु वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते है।“ आइए हम अपने मन में यह बात रखें कि जब तक हमारे हृदय में पाप है और हम गैर-ईसाई जीवन जीते हैं, तब तक ईसाई धर्म का नाम हमें कोई लाभ नहीं पहुँचा सकता है। परमेश्वर और उनके वचन के प्रति आज्ञाकारिता ही हमारे विश्वास का एकमात्र प्रमाण है, और केवल होठों की बातें व्यर्थ हैं यदि उनके साथ होठों का पवित्रीकरण न हो। कुछ लोग कह सकते हैं, ‘‘मैंने सोचा था कि ईसाई जीवन का आधार आज्ञाकारिता नहीं, बल्कि विश्वास है।‘‘ यीशु यहाँ स्पष्ट रूप से कहते हैं कि उनकी आज्ञाकारिता वैकल्पिक नहीं है। यह ईसाई जीवन का अभिन्न अंग है। मत्ती 7ः21 में यीशु झूठे विश्वास के खतरे को दर्शाते हैं। ‘‘जो मुझ से, ‘हे प्रभु, हे प्रभु‘ कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।‘‘ वह आगे उन लोगों के उदाहरण देता है जिन्होंने उनके नाम पर प्रभावशाली कार्य भी किए हैं, लेकिन जो अधर्म के कारण स्वर्ग के द्वार पर अस्वीकार कर दिए जाएँगे। बाहर से, ये लोग धर्मी प्रतीत होते है, परन्तु परमेश्वर उनके स्वार्थी इरादों और बुरे विचारों को जानते थे।
प्यारे दोस्तों, हम कह सकते हैं, ‘‘मैं एक ईसाई हूँ। यीशु मेरे परमेश्वर और उद्धारकर्ता हैं।‘‘ लेकिन यीशु हमसे कह रहे हैं, ‘‘अपने हृदय की जाँच करो! क्या तुम सचमुच मेरी आज्ञा मानना चाहते हो? क्या तुम मेरे वचन के प्रकाश में अपने पापों का न्याय करते हो? या फिर तुम खुद को धोखा दे रहे हो और यह कहकर खुद को सही ठहरा रहे हो, ‘‘हर कोई ऐसा करता है।‘‘ याद रखें, यीशु की आज्ञा मानना वैकल्पिक नहीं है, यह इस बात की सच्ची परीक्षा है कि मसीह में हमारा विश्वास सच्चा है या नकली।
प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, जब मैं आपकी आज्ञा मानता हूँ, तो मैं दर्शाता हूँ कि मैं आपसे प्रेम करता हूँ और मुझे आप पर खुद से भी ज्यादा विश्वास है। मैं सिर्फ अपने होठों से यह न कहूँ कि यीशु मेरे प्रभु हैं, बल्कि मैं अपने जीवन में यह भी दिखाऊँ कि मैं आपकी आज्ञाओं का पालन करके और साक्षी जीवन जीकर यीशु का अनुयायी हूँ। आमीन।
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