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मंगलवार, 10 जून || मसीह ने जो शांति प्रदान की है उसे बनाए रखें

  • Writer: Honey Drops for Every Soul
    Honey Drops for Every Soul
  • Jun 10
  • 2 min read

आत्मिक अमृत अध्ययनः इफिसियों 2ः 11-18



‘‘क्योंकि वहीं हमारा मेल है, ... अपने शरीर में बैर अर्थात वह व्यवस्था जिसकी आज्ञाएँ विधियों की रीति पर थी, मिटा दिया ।‘‘ - इफिसियों 2ः 14,15

 

   यहूदियों का मानना था कि यहूदी कानून का पालन करने से ही कोई व्यक्ति परमेश्वर की संगति प्राप्त कर सकता है। यहूदी कानून में हजारों आज्ञाएँ और आदेश थे - हाथ एक निश्चित तरीके से धोने थे, बर्तनों को विशिष्ट तरीकों से साफ करना था, सब्त के दिन क्या किया जा सकता है और क्या नहीं किया जा सकता है, कई पापों के संबंध में बलिदान चढ़ाए जाने थे और इसी तरह की अन्य बातें थी। उनका धर्म बलिदान और पवित्र दिनों के बारे में सभी प्रकार के नियमों और विनियमों पर आधारित था। इसलिए यहूदियों ने अन्यजातियों को तुच्छ जाना और खुद को ऊंचा किया। उन्होंने उन्हें “खतनारहित” कहा और उन्हें इस्राएल की नागरिकता और वाचा से बाहर रखा। लेकिन पौलुस ने इफिसियों 2ः13 में कहा कि मसीह में वे जो कभी दूर थे, निकट लाए गए - यानी परमेश्वर के निकट। मसीह के लहू के माध्यम से परमेश्वर के करीब होने से यहूदियों और अन्यजातियों दोनों में एकता विकसित हुई थी। इसका एक बड़ा उदाहरण त्रिभुज है। शिखर पर परमेश्वर है और दोनों तरफ ऐसे लोग हैं जो कई मतभेदों से विभाजित हैं। वे परमेश्वर के जितने करीब होंगे, वे एक-दूसरे के उतने ही करीब होंगे।


प्यारे दोस्तों, यह दोस्ती, परिवार, विवाह आदि में विभाजन के लिए सच है। विभाजन की जड़ पाप है - हमारा अभिमान, स्वार्थ, असुरक्षा, ईर्ष्या, आदि। हम बहस करते हैं और लड़ते हैं क्योंकि हम अपना रास्ता खुद बनाना चाहते हैं। लेकिन याद रखें, हम परमेश्वर के जितने करीब आते हैं, उतने ही करीब और एकजुट होते हैं। हमारा क्षैतिज संबंध हमेशा हमारे ऊर्ध्वाधर संबंध को दर्शाता है। क्या हम आज किसी के साथ मतभेद में हैं? कई बार उस रिश्ते को ठीक करने का जवाब परमेश्वर के करीब आने जितना ही सरल होता है। जब हम परमेश्वर के करीब आते हैं, तो वे हमारे दिलों को बदल देते है और हम सुलह के लिए बेहतर काम कर पाते हैं। 

प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, मसीह ने आपकी और पापियों के बीच की दुश्मनी को दूर कर दिया है। उन्होंने अपने लहू के जरिए हमें आपके साथ मिला दिया है। उन्होंने दूसरों की सेवा करने और उन्हें एकजुट करने के लिए खुद को नम्र किया। मुझे उन लोगों को स्वीकार करने दें जो मेरे साथ संघर्ष में हैं। जैसे-जैसे मैं आपके करीब आता हूँ, मेरा दिल बदल जाए और मैं सुलह के लिए बेहतर काम करूँ। आमीन

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