बुधवार, जुलाई 09 || क्रूस पर मैं यीशु के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ
- Honey Drops for Every Soul

- Jul 9
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आत्मिक अमृत अध्ययनः इफिसियों 2ः 5-6
‘‘मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ, अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है।‘‘ - गलातियों 2ः 20
इस वचन में ‘‘मैं‘‘ ‘‘पुराना स्व‘‘ है, दुष्ट ‘‘मैं‘‘ जिसे क्रूस पर चढ़ाया गया था, और इसलिए अब हमारे जीवन पर उसका कोई वैध अधिकार नहीं है, क्योंकि अब हम आदम में नहीं बल्कि मसीह में हैं। यह अब परमेश्वर के सामने हमारी नई स्थिति है और इसे हमारे दैनिक व्यवहार में प्रतिबिंबित होना चाहिए। ‘‘मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया जाना‘‘ का अर्थ है हमारे सभी आत्म-विनाशकारी हिस्से - विद्रोह, संघर्ष, आक्रोश, स्वार्थ - ये सभी चीजें मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ा दी गई हैं। यह उन सभी बुराइयों का योग है जिसे क्रूस पर चढ़ाया गया है। फिर जैसे कि मसीह तीसरे दिन विजय में जी उठे, वैसे ही हम भी जीवन की नवीनता में चलने के लिए फिर से जी उठते हैं। (रोमियों 6ः4) हमें इसे अक्सर याद रखने की जरूरत है, ‘‘अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है, और मैं एक नई रचना हूँ।‘‘
जब सेंट ऑगस्टीन को पवित्र आत्मा ने उसके पाप का दोषी ठहराया, तो उसने यीशु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर लिया। वह एक अलग व्यक्ति बन गया और जीवन के प्रति उसका पूरा दृष्टिकोण बदलने लगा। एक दिन, जब वह सड़क पर चल रहा था, तो उसका एक पूर्व साथी पुकारने लगा, “ऑगस्टीन, यह मैं हूँ!” उसने उस बदनाम व्यक्ति की ओर एक नजर डाली जिसकी बुरी संगति में वह पहले शामिल था, और खुद को मसीह में अपनी नई स्थिति की याद दिलाते हुए, जल्दी से मुड़ा और चिल्लाते हुए भाग गया, “यह मैं नहीं हूँ!” ऑगस्टीन ने अपने दिल में गलातियों 2ः20 को छिपा रखा था, “अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है।” प्यारे दोस्तों, हमें प्रतिदिन परमेश्वर के सामने आने की जरूरत है, यह पुष्टि करने की जरूरत है कि हमारे पापी हिस्से क्रूस पर कीलों से ठोंके गए हैं। पूरे दिन, हर पल हमें अपने जीवन को मसीह को समर्पित करने की जरूरत है, क्योंकि परीक्षण और प्रलोभन हमारे दिमाग पर हमला करते हैं और हमें बर्बादी के उस रास्ते पर वापस ले जाने की कोशिश करते हैं जिस पर हम एक बार आदम में रहते हुए चले थे।प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, मुझे हमेशा अपने मन में यह बात रखनी चाहिए - ‘‘मैं जीवित हूँ‘‘, लेकिन एक अर्थ में, यह ‘‘मैं‘‘ नहीं है जो जीवित है, न ही पुराना ‘‘मैं‘‘ अपने सांसारिक जुनून के साथ। इसके बजाय ‘‘मसीह मुझमें रहता है।‘‘ मैं एक नई रचना हूँ। पुराना स्व ‘‘मर गया‘‘ है और नया स्व मसीह के साथ ‘‘जी उठा‘‘ है। आमीन।




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