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बुधवार, अगस्त 20 || वह जिसके कान हैं, उसे सुन लेने दो

  • Writer: Honey Drops for Every Soul
    Honey Drops for Every Soul
  • Aug 20
  • 2 min read

आत्मिक अमृत अध्ययनः यशायाह 46ः 3-13



‘“हे याकूब के घराने, हे इस्राएल के घराने के सब बचे हुए लोगो, मेरी ओर कान लगाकर सुनोय‘ - यशायाह 46ः3

आज की दुनिया के लोगों के बीच सबसे महत्वपूर्ण लेकिन बहुत उपेक्षित तत्वों में से एक है सुनने वाले कान की आदत डालना। हम खराब श्रोता हैं, लेकिन अच्छे वक्ता हैं। परमेश्वर चाहते हैं कि हम श्रोता भी बनें, और इसीलिए उन्होंने हमें सुनने के अंगों की एक अद्भुत जोड़ी दी है - कान। वे चाहते हैं कि हम पक्षियों के गीत और जानवरों की आवाज. और संगीत सुनें, लेकिन सबसे बढ़कर वे चाहते हैं कि हम उनकी और दूसरे लोगों की बात सुनें। हमारे परमेश्वर बोलने वाले परमेश्वर है। बुतपरस्त मूर्तियों के विपरीत, हमारे जीवित परमेश्वर ने बात की है और आज भी वे बोलते रहते हैं। हो सकता है कि वे हमसे सीधे और सुनने वाले तरीके से बात न करें जैसे उन्होंने अब्राहम से बात की थी, (उत्पत्ति 22ः 1) या छोटे लड़के शमूएल से, (1 शमूएल 3ः 4, 6, 8, 10) या दमिश्क के तारसुस के शाऊल से। (प्रेरितों के काम 9ः 3-7) आज परमेश्वर हमसे जिस मुख्य तरीके से बात करते हैं, वह पवित्रशास्त्र के माध्यम से है। पवित्र आत्मा की विशेष सेवकाई में से एक है परमेश्वर के वचन को “जीवित और सक्रिय” बनाना। (इब्रानियों 4ः12) इसलिए, जब हम परमेश्वर के वचन को पढ़ते हैं और उस पर मनन करते हैं, तो पवित्र आत्मा हमारे दिलों को खोलते है और हमारे जीवन में परमेश्वर की इच्छा को प्रकट करते है। हमारे और परमेश्वर के बीच संवादहीनता इसलिए नहीं है क्योंकि परमेश्वर मर चुके है या चुप है, बल्कि इसलिए है क्योंकि हम सुन नहीं रहे हैं।


प्यारे दोस्तों, आइए हम खुद की जाँच करें। क्या हम अपने जीवन में आध्यात्मिक ठहराव का अनुभव करते हैं? इसका मतलब है कि हमने परमेश्वर की बात सुनना बंद कर दिया है। शायद अब हमारे पास पवित्र शास्त्र पढ़ने और प्रार्थना करने का शांत समय नहीं है। या अगर हम ऐसा करते हैं, तो यह वास्तविकता से ज्यादा एक दिनचर्या है। आइए हम छोटे शमूएल का रवैया अपनाएँ और कहें, “प्रभु बोलें, क्योंकि आपका सेवक सुन रहा है।” आइए हम सुनें कि परमेश्वर हमसे क्या कहना चाहते है।
प्रार्थनाः स्वर्गीय पिता, आपने मुझे अद्भुत कान और सुनने की शक्ति दी है। लेकिन दुख की बात है कि मैंने अपने कानों को इस तरह से तैयार नहीं किया है कि आप मुझे जो कहना चाहते हैं, उसे सुन सकूँ। पवित्र आत्मा, जब मैं परमेश्वर का वचन पढ़ता हूँ तो मेरा हृदय और मेरे कान खोलें और मुझे यह सुनने में मदद करें कि यह क्या कहता है। आमीन



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